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विनम्र श्रद्धांजलि - श्रीलाल शुक्ल


सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार श्री श्रीलाल शुक्ल जी आज हमारे बीच नहीं हैं. साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित और पद्म -भूषण से सुशोभित श्री शुक्लजी ने राग दरबारी, सीमाएं टूटती हैं, राग विराग इत्यादि कई यादगार कृतियाँ साहित्य जगत को दी हैं . श्रीलाल शुक्ल के देहावसान से साहित्य जगत में जो सूनापन आया है, उसे भरा जाना शायद इस सदी में सम्भव नहीं हो पाएगा. 'हिन्दी चेतना' परिवार उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है.

श्रीलाल नें लिखी धूप तो कभी बुहारी छांव,
जमा गए पाठक के मन पर जो 'अंगद का पांव',
जो 'अंगद का पांव' प्रेरणा का संचारी,
व्यंग लोक की पारसमणि 'राग दरबारी',
जग को दिखा गयी कलम जो अनुपम कई कमाल,
श्रद्धांजलि हमारी युग युग अमर रहें श्रीलाल.

हिंदी चेतना - अंक अक्टूबर २०११ - डॉ प्रेम जनमेजय विशेषांक



हिंदी चेतना - अंक अक्टूबर २०११ - डॉ प्रेम जनमेजय विशेषांक (कृपया इस लिंक पर क्लिक कर के पत्रिका डाउनलोड करें)

हिंदी व्यंग्य के धारदार हस्ताक्षर को समर्पित इस अंक में पढ़िए पंकज सुबीर, मनोज श्रीवास्तव, प्रदीप पन्त, हरीश नवल, सूरज प्रकाश, अशोक चक्रधर, मनोहर पुरी, सूर्यबाला, तरसेम गुजराल, यज्ञ शर्मा, नरेंद्र कोहली, उषा राजे सक्सेना, अनिल जोशी, गिरीश पंकज, ज्ञान चतुर्वेदी, महेश दर्पण, अजय अनुरागी, प्रताप सहगल, हरि शंकर आदेश, अविनाश वाचस्पति, राधेश्याम तिवारी, अजय नावरिया, वेदप्रकाश अमिताभ, लालित्य ललित तथा अमित कुमार सिंह के संस्मरण तथा आलेख. इसके अलावा और भी...