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हिंदी चेतना - अंक जनवरी २०१३




आदरणीय मित्रों, आप सबको नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं !
श्री श्याम त्रिपाठी तथा  डॉ सुधा ओम ढींगरा के संपादन में कैनेडा से प्रकाशित त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 'हिन्‍दी चेतना' का जनवरी-मार्च 2013 अंक अब उपलब्‍ध है, जिसमें हैं श्री राजेंद्र यादव का लालित्य ललित द्वारा लिया गया विशेष साक्षात्‍कार । विकेश निझावन, रीता कश्‍यप, डॉ स्‍वाति तिवारी की कहानियां । वरिष्‍ठ कहानीकार श्री नरेंद्र कोहली की लम्‍बी कहानी। हाइकु, नवगीत, कविताएं, ग़ज़लें, आलेख, लघुकथाएं, संस्‍मरण, व्‍यंग्‍य। साथ में पुस्तक समीक्षा में दस युवा कथाकारों की पुस्‍तकों पर समीक्षा, साहित्यिक समाचार, चित्र काव्यशाला, विलोम चित्र काव्यशाला और आख़िरी पन्ना ।   
नव वर्ष का स्वागत करते हुए हिंदी चेतना का यह नया अंक आपके लिए प्रस्तुत है| हमारा प्रयास है कि आपको अपनी भाषा में आपके मन की बात आप तक पहुंचाई जाए | इसमें हम कितना सफल हुए हैं, इसका पता हमको आपकी प्रतिक्रियाओं से चलता है | अतः निस्संकोच अपने मन की बात लिखें |


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दैनिक जागरण में 'हिन्दी चेतना' का लघुकथा विशेषांक

रविवार 18 नबम्बर 2012 के दैनिक जागरण में पृष्ठ संख्या 9 पर 'हिन्दी चेतना' के लघुकथा विशेषांक पर लिखा गया है । जो लिखा गया है वह प्रस्तुत है -
कभी रहा होगा लोगों के पास इतना समय कि तोल्स्तोय या दोस्तोएव्सकी के वार ऐंड पीस या क्राइम एंड पनिशमेंट जैसे भारी भरकम उपन्यास भी बड़े चाव से पढ़ लेते होंगे, लेकिन आज के महानगरीय मानुष के पास पठन-पाठन के अलावा श्रवण और दर्शन के दूसरे माध्यम मौजूद हैं कि पठन-पाठन के लिए न तो उसके पास समय बचा है, न ही वैसी रुचि और इच्छा शेष रह गई है। यदि शेष है भी तो वह उसे कम से कम समय में कम से कम शब्दों में पढ़कर पूरी कर लेना चाहता है। देश की छोटी-बड़ी ज्यादातर पत्र-पत्रिकाओं में कहानी और उपन्यास अंश के साथ लघुकथाओं को भी स्थान मिलता रहा है और कुछ पत्रिकाओं ने तो लघुकथा विशेषांक तक प्रकाशित किए हैं। कनाडा से प्रकाशित होने वाली चर्चित पत्रिका हिन्दी चेतना (सं. श्याम त्रिपाठी / सुधा ओम ढींगरा) का नया अंक लघुकथा विशेषांक है, जिसमें देश और दुनिया के कथाकारों की लघुकथाएं छपी हैं। इसका संपादन चर्चित लघुकथा लेखक सुकेश साहनी और रामेश्वर काम्बोज हिमांशु ने किया है। हिन्दी  चेतना के इस विशेषांक में पाठकों को पढ़ने को मिल सकती हैं-राष्ट्र का सेवक (प्रेमचंद), गिलट (उपेंद्रनाथ अश्क), संस्कृति (हरिशंकर परसाई), मैं वही भगीरथ हूं (शरद जोशी), मेरी बड़ाई (सुदर्शन), भिखारी और चोर (रावी), पानी की जाति (विष्णु प्रभाकर), नैतिकता का बोध (रघुवीर सहाय), अपने पार (राजेंद्र यादव) जैसी महत्वपूर्ण हिन्दी लघुकथाएं। इस अंक में प्रेम (इवान तुर्गनेव), अलाव और चीटियां (सोल्जेनित्सिन), तस्वीर (यासुनारी काबाबाता), निद्राजीवी (खलील जिब्रान), ठंडी आग (लूशुन), कमजोर (चेखव), पुल (काफ्का) तथा यांत्रिक (चार्ली चैप्लिन) जैसी दुनिया की श्रेष्ठ लघुकथाएं भी हैं। इनके अलावा चित्रा मुद्गल, श्यामसखा श्याम, असगर वजाहत, युगल, सुभाष नीरव, कमल चोपड़ा, मुकेश वर्मा, चैतन्य त्रिवेदी, सूर्यकांत नागर, अशोक भाटिया, बलराम अग्रवाल तथा कमलेश भारतीय जैसे शताधिक कथाकारों की महत्वपूर्ण लघुकथाएं पाठकों के लिए संजोई गई हैं। सुधा ओम के आखिरी पन्ना में सही ही लिखा गया है कि अभी तो हम विपरीत धारा में नौका चलाने की चुनौती स्वीकार कर संघर्ष कर रहे हैं। धीरे-धीरे अंधेरे रास्ते स्पष्ट होने शुरू हुए हैं। कुल मिलाकर लघुकथा को वैश्विक संदर्भ में पेश करने का हिंदी में यह अब तक का सबसे बड़ा और अहम प्रयास है।
वैसे आप लिंक पर भी जा कर पढ़ सकते हैं ---


http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2012-11-18&pageno=9#id=111755267132629066_49_2012-11-18

अंतरराष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका 'हिन्दी चेतना' के संस्थापक एवं मुख्य संपादक श्री श्याम त्रिपाठी को सरस्वती सम्मान




         मिसिसागा, अक्तूबर २७, २०१२- आज दोपहर के बाद तीन बजे पोर्ट क्रेडिट सैकेंडरी स्कूल के सभागार में हिन्दी राइटर्स गिल्ड का चौथा वार्षिकोत्सव आयोजित किया गया। हर वर्ष इस उत्सव के लिए एक मुख्य विषय चुना जाता है और पूरा कार्यक्रम उस पर आधारित होता है। इस वर्ष के कार्यक्रम में साहित्य की विभिन्न विधाओं को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया था।
      कार्यक्रम का आरम्भ मानोशी चैटर्जी द्वारा सुमधुर सरस्वती वंदना से हुआ। संचालिका लता पांडे ने दर्शकों, मुख्य अतिथियों और अन्य गणमान्य लोगों का स्वागत करते हुए हिन्दी राइटर्स गिल्ड की गत वर्ष की मुख्य गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री बिधु शेखर झा, जो कि न केवल मैनीटोबा के एमपीपी हैं बल्कि एक सिद्धहस्त लेखक और कवि भी हैं, का मंच पर सम्मान किया गया। बिधु जी ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड के प्रयासों की सराहना करते हुए जीवन में भाषा के महत्त्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हिन्दी में संकीर्ण विचारधारा को छोड़ कर विदेशी भाषा के शब्दों भी अपनाना चाहिए ताकि भाषा का विकास होता रहे परन्तु साथ ही बलपूर्वक कहा कि भाषा को प्रदूषित मत होनें दें। उदाहरण देते हुए "इंटरनेट" शब्द को स्वीकार और बात-बात में "बिकॉज़" को अस्वीकार करने को कहा। कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण "रश्मिरथी" पर आधारित नाटक पर बोलते हुए उन्होंने स्व. रामधारी सिंह "दिनकर" के साथ कुछ व्यक्तिगत अनुभव बताए और रश्मिरथी के प्रति प्रेम को प्रमाणित करते हुए उन्होंने इस खंडकाव्य में से कुछ अंश सुनाए।
     कार्यक्रम में हिन्दी के लिए समर्पित और निःस्वार्थ सहायता करने वालों, एमपीपी दीपिका दामेर्ला, हिन्दी टाइम्स मीडिया के प्रमुख राकेश तिवारी और स्टार बज़्ज़ मीडिया ग्रुप के प्रमुख भूपिन्दर विरदी को सम्मानित किया गया। दीपिका जी ने भारत में आधुनिक परिवेश में हिन्दी को निम्नवर्ग की भाषा की अवधारणा की निंदा करते हुए कहा कि हमें इस मनोवृत्ति के प्रति सजग रहना होगा और उन्होंने आशा व्यक्त की कि वह हिन्दी राइटर्स गिल्ड के साथ जुड़ी रहेंगी। भूपिन्दर जी ने कुछ ही शब्दों में हिन्दी राइटर्स गिल्ड की सराहना की। राकेश तिवारी जी ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड के संगठन में समानता के महत्व की सराहना की और कहा कि वह हर प्रयास से संस्था की सहायता के लिए तैयार हैं।
     अगले चरण में कैनेडा से प्रकाशित होने वाली अंतरराष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका 'हिन्दी चेतना' के संस्थापक एवं मुख्य संपादक श्री श्याम त्रिपाठी जी को सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान हिन्दी की निःस्वार्थ सेवा करने वालों को प्रदान किया जाता है और त्रिपाठी जी इसके पाने वाले दूसरे व्यक्ति हैं।
     कार्यक्रम के साहित्यिक चरण का संचालन श्रीमती भुवनेश्वरी पांडे ने किया। टोरोंटो में पहली बार किसी मंच से दो लघुकथाओं पढ़ी गयीं। पहली लघुअकथा "ऊँचाई" रामेश्वर काम्बोज "हिमांशु" जी की थी और पढ़ने वाली थीं डॉ. इंदु रायज़ादा; दूसरी लघुकथा सुमन कुमार घई की "विवशता" थी और इसे पढ़ा मीना चोपड़ा ने। तीन हास्य-व्यंग्य के कवियों सुरेन्द्र शर्मा, काका हाथरसी और ओम प्रकाश आदित्य की रचनाओं का पाठ क्रमशः निर्मल सिद्धू, पाराशर गौड़ और संजीव अग्रवाल ने किया। इसके पश्चात बच्चों ने अपनी संगीत कला का प्रदर्शन करते हुए मंच सँभाला। उमंग सक्सेना ने बाँसुरी का शास्त्रीय वादन किया और अर्जुन पांडे ने अपनी कला तबले पर दिखलायी। कार्यक्रम के प्रथम भाग की अंतिम प्रस्तुति में मानोशी चैटर्जी ने गीतांजली के दो अंशों का हिन्दी अनुवाद का भावपूर्ण काव्यपाठ किया।
     एक छोटे से अल्पाहार के अल्पविराम के बाद दर्शक सभागार में फिर से एकत्रित हुए और मानोशी चैटर्जी ने रश्मिरथी के संदर्भ के बारे में बतलाया। नाटक का मंचन बहुत भावपूर्ण और कुशलता से हुआ। एक घंटे इस नाटक में पता ही नहीं चला कि समय कब बीत गया। इसके बाद सभा के विसर्जन में धन्यवाद ज्ञापन विजय विक्रांत जी ने दिया। अंत में प्रीतिभोज हुआ और जिसके दौरान भी लोग नाटक की वाह-वाह कर रहे थे।  


सुमन कुमार घई
संपादक -
हिन्दी टाइम्स ( कैनेडा )

'हिन्दी चेतना' के लघुकथा विशेषांक का विमोचन


27 अक्तूबर  2012 को सरकारी सीनियर सेकेण्डरी स्कूल बनीखेत ( डल्हौजी) , हिमाचल के सभागार में ‘पंजाबी साहित अकादमी लुधियाना’ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं हिन्दी पंजाबी लघुकथा के समर्थ समालोचक डॉ. अनूप सिंह ने इक्कीसवें अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन के अवसर पर हिन्दी चेतना त्रैमासिक( मुख्य सम्पादक श्याम त्रिपाठी, सम्पादक-डॉ. सुधा ओम ढींगरा-) के लघुकथा विशेषांक का विमोचन किया । इस अवसर पर इस विशेषांक के सम्पादक द्वय सुकेश साहनी - रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु, हिन्दी पंजाबी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति( प्रो मैडिकल कॉलेज अमृतसर एवं सम्पादक मिन्नी त्रैमासिक  पंजाबी) एवं डॉ.सूर्यकान्त नागर ( इन्दौर) भी उपस्थित थे ।

हिंदी चेतना - अंक अक्टूबर २०१२ - लघुकथा विशेषांक


श्री श्‍याम त्रिपाठी के संपादन में कैनेडा से प्रकाशित त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 'हिन्‍दी चेतना' का अक्‍टूबर दिसम्‍बर अंक 'लघुकथा विशेषांक' अब उपलब्‍ध हैजिसमें हैं सौ से भी अधिक लघुकथाएं  अतिथि सम्‍पादक द्वय श्री रामेश्‍वर काम्‍बोज 'हिमांशुतथा श्री सुकेश साहनी द्वारा सम्‍पादित एक संग्रहणीय अंक  आधारशिलाअविस्‍मरणीय,नई ज़मीनसम्‍पदास्‍वागतम् और मेरी पसंद स्‍तंभों के अंतर्गत प्रेमचंदउपेंद्रनाथ अश्‍कहरिशंकर परसाईशरद जोशीराजेंद्र यादवरघुबीर सहायचेखवकाफ्काचार्ली चैपलिन,असगर वजाहतआनंद हर्षुलचित्रा मुद्गलउदय प्रकाश सहित सौ से भी अधिक कहानीकारों की लघुकथाएं  लघुकथा को लेकर डॉ श्‍यामसुंदर दीप्तिडॉ सतीशराज पुष्‍करणा,श्‍याम सुंदर अग्रवालसुभाष नीरवडॉ सतीश दुबेभगीरथ की विशेष परिचर्चा  लघुकथा की सृजनात्‍मक प्रक्रिया श्री काम्‍बोज का विशेष लेख  लघुकथा पर एक समग्रदस्‍तावेज  साथ में पुस्तक समीक्षासाहित्यिक समाचारचित्र काव्यशालाविलोम चित्र काव्यशाला और आख़िरी पन्ना  यह लघुकथा विशेषांक अब ऑनलाइन उपलब्‍ध है,पढ़ने के लिये नीचे दिये गये लिंक पर जाएं 

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हिंदी चेतना - अंक जुलाई २०१२




मित्रों हिन्‍दी चेतना का जुलाई-सितम्‍बर 2012 अंक प्रकाशित हो गया है । साहित्‍य की सारी विधाओं को स्‍थान देने का प्रयास हिन्‍दी चेतना के संपादक मंडल ने किया है । कहानियांसाक्षात्‍कारव्‍यंग्‍य,कविताएंग़ज़लेंआलेखआपके पत्र और भी बहुत कुछ समेटे है हिन्‍दी चेतना का ये नया अंक । पढ़ें और अपनी बेबाक रायअपने अमूल्‍य सुझावों से हमें अवगत कराएं ।
आप की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा |


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पूर्णिमा वर्मन पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यानारायण पुरस्कार से सम्मानित

  २० जून २०१२ को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में महामहिम प्रतिभा पाटिल द्वारा अभिव्यक्ति एवं अनुभूति की संपादक पूर्णिमा वर्मन को वर्ष २००८ के पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यानारायण पुरस्कार से सम्मानित किया।

इस समारोह में हिंदी साहित्य एवं भाषा के लिये अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने वाले विद्वानों को पुरस्कृत किया गया था। वर्ष २००९ के लिये यह पुरस्कार यू.एस.ए. के डॉ. सुरेन्द्र गंभीर को प्रदान किया गया। वर्ष २००७ के लिये अमेरिका की उषा प्रियंवदा तथा २००२ के लिये कैनेडा के प्रो. हरिशंकर आदेश यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले अन्य प्रसिद्ध व्यक्ति हैं।

डॉ. मोटूरि सत्यानारायण पुरस्कार एक साहित्यिक पुरस्कार है जो भारत के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा किसी ऐसे भारतीय मूल के विद्वान को दिया जाता है जिसने विदेश में हिन्दी भाषा या साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया हो। इस पुरस्कार का प्रारंभ तमिलनाडु के हिंदी सेवी एवं विद्वान मोटूरि सत्यनारायण के नाम पर १९८९ में हुआ था। इस पुरस्कार में एक लाख रुपये नकद, एक स्मृतिचिह्न, प्रशस्ति पत्र और शाल शामिल हैं। यह पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति द्वारा स्वयं प्रदान किया जाता है।

विनम्र श्रद्धांजलि: तुम जैसे गये वैसे तो जाता नहीं कोई

विनम्र श्रद्धांजलि: तुम जैसे गये वैसे तो जाता नहीं कोई
:अवनीश सिंह चौहान 
 
 

2 जुलाई की शाम प्रबुद्ध नवगीतकार एवं नये-पुराने पत्रिका के यशश्वी
सम्पादक परम श्रद्धेय गुरवर दिनेश सिंह का निधन उनके पैतृक गाँव गौरारूपई
में हो गया। जब यह दुखद समाचार कौशलेन्द्र जी ने मुझे दिया तो मेरा ह्रदय
काँप उठा। यद्यपि वे लम्बे समय से अस्वस्थ चल रहे थे- वे न तो बोल सकते
थे न ही ठीक से चल-फिर सकते थे, फिर भी अभी उनके जीवित रहने की उम्मीद हम
सभी को थी। किन्तु होनी को कौन टाल सकता है... आज उनकी कमी उनके सभी
चाहने वालों को खल रही है। "रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई/ तुम जैसे
गये वैसे तो जाता नहीं कोई।।"

१४ सितम्बर १९४७ को रायबरेली (उ.प्र.) के एक छोटे से गाँव गौरारुपई में
जन्मे श्रद्देय दिनेश सिंह जी का नाम हिंदी साहित्य जगत में बड़े अदब से
लिया जाता है। सही मायने में कविता का जीवन जीने वाला यह गीत कवि अपनी
निजी जिन्दगी में मिलनसार एवं सादगी पसंद रहा है । अब उनका स्वास्थ्य
जवाब दे चुका है । गीत-नवगीत साहित्य में इनके योगदान को एतिहासिक माना
जाता है । दिनेश जी ने न केवल तत्‍कालीन गाँव-समाज को देखा-समझा है और
जाना-पहचाना है उसमें हो रहे आमूल-चूल परिवर्तनों को, बल्कि इन्होने अपनी
संस्कृति में रचे-बसे भारतीय समाज के लोगों की भिन्‍न-भिन्‍न मनःस्‍थिति
को भी बखूबी परखा है , जिसकी झलक इनके गीतों में पूरी लयात्मकता के साथ
दिखाई पड़ती है। इनके प्रेम गीत प्रेम और प्रकृति को कलात्मकता के साथ
प्रस्तुत करते हैं । आपके प्रणयधर्मी गीत भावनात्मक जीवनबोध के साथ-साथ
आधुनिक जीवनबोध को भी केंद्र में रखकर बदली हुईं प्रणयी भंगिमाओं को
गीतायित करने का प्रयत्न करते हैं। अज्ञेय द्वारा संपादित 'नया प्रतीक'
में आपकी पहली कविता प्रकाशित हुई थी। 'धर्मयुग', 'साप्ताहिक
हिन्दुस्तान' तथा देश की लगभग सभी बड़ी-छोटी पत्र-पत्रिकाओं में आपके
गीत, नवगीत तथा छन्दमुक्त कविताएं, रिपोर्ताज, ललित निबंध तथा समीक्षाएं
निरंतर प्रकाशित होती रहीं हैं। 'नवगीत दशक' तथा 'नवगीत अर्द्धशती' के
नवगीतकार तथा अनेक चर्चित व प्रतिष्ठित समवेत कविता संकलनों में गीत तथा
कविताएं प्रकाशित। 'पूर्वाभास', 'समर करते हुए', 'टेढ़े-मेढ़े ढाई आखर',
'मैं फिर से गाऊँगा' आदि आपके नवगीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । आपके
द्वारा रचित 'गोपी शतक', 'नेत्र शतक' (सवैया छंद), 'परित्यक्ता'
(शकुन्तला-दुष्यंत की पौराणिक कथा को आधुनिक संदर्भ देकर मुक्तछंद की
महान काव्य रचना) चार नवगीत-संग्रह तथा छंदमुक्त कविताओं के संग्रह तथा
एक गीत और कविता से संदर्भित समीक्षकीय आलेखों का संग्रह आदि प्रकाशन के
इंतज़ार में हैं। चर्चित व स्थापित कविता पत्रिका
'नये-पुराने'(अनियतकालीन) के आप संपादक हैं । उक्त पत्रिका के माध्यम से
गीत पर किये गये इनके कार्य को अकादमिक स्तर पर स्वीकार किया गया है ।
स्व. कन्हैया लाल नंदन जी लिखते हैं- " बीती शताब्दी के अंतिम दिनों में
तिलोई (रायबरेली) से दिनेश सिंह के संपादन में निकलने वाले गीत संचयन
'नये-पुराने' ने गीत के सन्दर्भ में जो सामग्री अपने अब तक के छह अंकों
में दी है, वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं रही . गीत के सर्वांगीण विवेचन का
जितना संतुलित प्रयास 'नये-पुराने' में हुआ है, वह गीत के शोध को एक नई
दिशा प्रदान करता है. गीत के अद्यतन रूप में हो रही रचनात्मकता की बानगी
भी 'नये-पुराने' में है और गीत, खासकर नवगीत में फैलती जा रही असंयत
दुरूहता की मलामत भी. दिनेश सिंह स्वयं न केवल एक समर्थ नवगीत हस्ताक्षर
हैं, बल्कि गीत विधा के गहरे समीक्षक भी " (श्रेष्ठ हिन्दी गीत संचयन-
स्व. कन्हैया लाल नंदन, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, २००९, पृ. ६७) । आपके
साहित्यिक अवदान के परिप्रेक्ष्य में आपकोराजीव गांधी स्मृति सम्मान,
अवधी अकेडमी सम्मान, पंडित गंगासागर शुक्ल सम्मान, बलवीर सिंह 'रंग'
पुरस्कार से अलंकृत किया जा चुका है।

दिनेश सिंह के नवगीत संग्रह कलम के प्रयोग एवं बुद्धि कौशल के बल पर
अदम्य साहस एवं अटूट विश्वास से लबरेज होकर युद्धरत दिखाई पड़ते हैं उन
सभी विडंबनापूर्ण स्थितियों एवं असंगत तत्वों से जोकि समय के साँचे में
अपनाआकार लेकर मानवीय पीड़ा का सबब बनी हुई हैं। लगता है कि उनकी रचनाएँ
अपनी जगह से हटतीं-टूटतीं चीजों और मानवीय चेतना एवं स्वभाव पर भारी
पड़ते समय के तेज झटकों को चिह्नित कर उनका प्रतिरोध करने तथा इससे उपजे
कोलाहल एवं क्रंदन के स्वरों को अधिकाधिक कम करने हेतु नये विकल्पों को
तलाशने के लिए महासमर में जूझ रही हैं।

इस प्रकार से वैश्विक फलक पर तेजी से बदलती मानवीय प्रवृत्तियों एवं
आस्थाओं और सामाजिक सरोकारों के नवीन खाँचों के बीच सामंजस्य बैठाने की
अवश्यकता का अनुभव करती इन कविताओं में जहाँ एक ओर नए सिरे से नए बोध के
साथ जीवन-जगत के विविध आयामों को रेखांकित करने की लालसा कुलबुलाती है तो
वहीं आहत मानवता को राहत पहुचाने और उसके कल्याण हेतु सार्थक प्रयास करने
की मंशा भी उजागर होती हैं। और उद्घाटित होता है कवि का वह संकल्प भी
जिसमें समय की संस्कृति में उपजे विषान्कुरों के प्रत्यक्ष खतरों का
संकेत भी है और इन प्रतिकूल प्रविष्टियों के प्रति घृणा एवं तिरस्कार की
भावना को जगाने की छटपटाहट भी। साथ ही प्रकट होता है कवि का यह सुखद
संदेश रण में बसर करते हुए ‘कॉमरेड‘ के लिए ताकि वह बेहतर जीवन जीने हेतु
भविष्य के व्यावहारिक सपने सँजो सके-
व्यूह से तो निकलना ही है
समर करते हुए
रण में बसर करते हुए।

हाथ की तलवार में
बाँधे कलम
लोहित सियाही
सियासत की चाल चलते
बुद्धि कौशल के सिपाही
जहर सा चढ़ते गढ़े जजबे
असर करते हुए
रण में बसर करते हुए।

बदल कर पाले
घिनाते सब
उधर के प्यार पर
अकीदे की आँख टिकती
जब नए सरदार पर
कसर रखकर निभाते
आबाद घर करते हुए
रण में बसर करते हुए।

धार अपनी माँजकर
बारीक करना
तार सा
निकल जाना है
सुई की नोक के उस पार सा
जिंदगी जी जाएगी
इतना सफर करते हुए
रण में बसर करते हुए।

भूमंडलीकरण के इस दौर में तकनीक के विकसित होने से जहाँ भौगोलिक दूरियाँ
घटी हैं और एक मिली-जुली संस्कृति का उदय हुआ है वहीं अर्थलिप्सा,
ऐन्द्रिय सुख एवं आपसी प्रतिस्पर्धा की भावना में भी बड़ा उछाल आया है।
इन्ही उछालों की अनियंत्रित बाढ़ से जो चैंपी बाहर आयी उससे आपसी संबंधों
में टूटन-पपड़ी पड़ी जिसमें आंतरिक कुठा एवं हूक के आँसू भी हैं और बाह्य
संघर्ष एवं अलगाव के बिंब भी। हालाँकि इसी में उठने वाली मानवता की लहरों
ने भी दूर-दूर तक अपना सीमित प्रसार किया है जिसमें कुछ
आशाएँ-प्रत्याशाएँ अब भी शेष हैं। इन्हीं के सहारे कवि कूद पड़ा है इस
समर में अपने अनुभवों एवं सजग संवेदनाओं से लैस होकर प्रेम के गीत गाता
हुआ-
वैश्विक फलक पर
गीत की संवेदना है अनमनी
तुम लौट जाओ
प्यार के संसार से
मायाधनी

यह प्रेम वह व्यवहार है
जो जीत माने हार को
तलवार की भी धार पर
चलना सिखा दे यार को
हो जाए पूरी चेतना
इस पंथ की अनुगामिनी।

कुल मिलाकर इस समसामयिक संकट से लोहा लेने हेतु इन गीतों मे जो
जीवटता,जीवन की संश्लिष्टता तथा अडिग आस्था का निरूपण हुआ है, उससे कवि
की साहित्यिक सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रतिबद्धता स्पष्ट झलकती है। इनमें
मानव जीवन की प्रचलित भाषा-लय को पकड़कर बखूबी गाया गया है और अपनी
रागवेशित अंतर्वस्तु के माध्यम से स्वीकार्य एवं अस्वीकार्य जीवन के
तानों-बानों के पारस्परिक संबंधों को कभी सीधे सहज रूप में तो कभी वक्रता
के साथ व्यंजित किया गया है। इसके साथ ही प्रदर्शित होती है मानवीय
अस्मिता एवं जिजीविषा को बनाए रखने की जद्दोजहद इन्हीं अनूठी रचनाओं में
अपनी संपूर्ण ताजगी एवं प्रासंगिकता के साथ। कवि के इस सार्थक सृजन से
उम्मीद है कि गूँजता रहेगा उनका यह प्रेरक संदेश दसों दिशाओं में-

हम हों कि न हों
इस धरती पर
यों झुका रहेगा महाकाश
बीतते रहेंगे दिवस-मास।

जाड़े की सुबहें चेहरों पर
आँखों में सूरज की भाषा
गीतों में फूलों के मुखड़े
जीवन में पथ की परिभाषा
पाँवों में
बँधे-बँधे मरुस्थल
यात्रा में उखड़ी साँस-साँस
बीतते रहेंगे दिवस मास।

विनम्र श्रद्धांजलि - डॉ. गौतम सचदेव



ब्रिटेन के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गौतम सचदेव का आज 29 जून 2012 की सुबह 1.00 बजे दिल का आपरेशन असफल होने से निधन हो गया है | 'हिन्दी चेतना' परिवार अपने हृदय की गहराइयों से श्रद्धा के फूल अर्पित करता है | ईश्वर उनकी दिवगंत आत्मा को शांति प्रदान करे |

डॉ. गौतम सचदेव को उनके कहानी संग्रह साढ़े सात दर्जन पिंजरे के लिये वर्ष 2007 का प्रतिष्ठित पद्मानंद साहित्य सम्मानब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में सम्मानित किया गया। वे कहानी, कविता, व्यंग्य, आलोचना आदि विधाओं में समान अधिकार से लिखते थे। उनके साहित्य पर कई विश्ववद्यालयों में शोध कार्य चल रहा है।


 डॉ. गौतम सचदेव के परिचय के लिये कृप्या क्लिक करेः http://www.abhivyakti-hindi.org/lekhak/g/gautamsachdev.htm


संतप्त हृदय से संवेदनाओं के साथ --
हिन्दी चेतना परिवार

अट्ठारहवां अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान

(बैठे हुए बाएं से – प्रदीप सौरभ, काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी, विरेन्द्र शर्मा एम.पी., लॉर्ड किंग, सोहन राही।)

(खड़े हुए बाएं से – आदिति महेश्वरी, काउंसलर के.सी. मोहन, फ़्रेंचेस्का ऑरसीनी, तेजेन्द्र शर्मा, दीप्ति शर्मा, मधु अरोड़ा, नीना पाल, कैलाश बुधवार।)

Pradeep Saurabh receiving his award: 
(बाएं से काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी, प्रदीप सौरभ, कैलाश बुधवार, विरेन्द्र शर्मा, तेजेन्द्र शर्मा, लॉर्ड किंग, सोहन राही)

Sohan Rahi receiving his award:
बाएं से लॉर्ड किंग, विरेन्द्र शर्मा (एम.पी.), तेजेन्द्र शर्मा, सोहन राही, काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी, कैलाश बुधवार।


जो लेखक अपने समय के सत्य को संबोधित नहीं करता
वह इतिहास के कूड़े में फैंक दिया जाता है  -  प्रदीप सौरभ

(लंदन) - ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में उपन्यासकार प्रदीप सौरभ को उनके उपन्यास तीसरी ताली के लिये अट्ठारहवां अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान प्रदान करते हुए वैस्ट ब्रॉमविच के लॉर्ड किंग ने कहा कि लेखक ही समाज में बदलाव ला सकता है। उन्होंने आगे कहा कि कोई भी संस्कृति तभी बची रह सकती है यदि उसकी भाषा की ताक़त महफ़ूज़ रहे। इस अवसर पर उन्होंने सर्रे निवासी ब्रिटिश हिन्दी एवं उर्दू के शायर श्री सोहन राही को तेरहवां पद्मानंद साहित्य सम्मान भी प्रदान किया।  ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने सम्मान समारोह की मेज़बानी की।
श्री विरेन्द्र शर्मा ने प्रदीप सौरभ के उपन्यास के विषय पर टिप्पणी करते हुए कहा कि 21वीं सदी में हमारी बहुत सी परम्पराएं मान्य नहीं रही हैं। यह उपन्यास एक चेतावनी है कि हमें अपने समाज में हिजड़ों के प्रति नज़रिया बदलना होगा। इस विषय में उन्होंने ब्रिटेन जैसे उन्नत देशों से सीख लेने की सलाह दी। उन्होंने सोहन राही के सम्मान को अपने शहर का सम्मान बताया जहां से दोनों जीवन में आगे बढ़ कर ब्रिटेन पहुंचे। 
सम्मान ग्रहण करते हुए प्रदीप सौरभ ने स्पष्ट किया कि लेखक को रचना के माध्यम से तोला जाए न कि उसके व्यक्तिगत जीवन से। उन्होंने आगे ज़ोर दे कर कहा, जीवन जीने के लिये बचपन से कितने समझौते, कितने ग़लत काम किये होंगे, मैं उन्हें स्वीकार करता हूं। मैं पत्रकार हूं, टी.वी. चैनल में काम करता हूं, कहने को सच्चाई की मशाल लिये खड़ा हूं, मगर सच तो यह है कि अपनी अख़बार के मालिक के लिये दलाली करता हूं। मगर जब मैं लेखन करता हूं तो स्वतन्त्र होता हूं। हर इन्सान के चेहरे पर अनेक मुखौटे होते हैं और मैं तो मुखौटों का म्यूज़ियम हूं। दीप्ति शर्मा ने तीसरी ताली के उपन्यास अंश का मार्मिक पाठ किया।
काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने समारोह में वाणी प्रकाशन की युवा प्रकाशक आदिति महेश्वरी की उपस्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह हिन्दी साहित्य के लिये शुभ समाचार है कि पढ़े लिखे युवा अब हिन्दी प्रकाशन क्षेत्र में पदार्पण कर रहे हैं। इससे सकारात्मक बदलाव आने की पूरी संभावना है।  मैनें हमेशा ही यह कहा है कि हिन्दी उपन्यास और कहानी लेखन में शोध बहुत कम किया जाता है। किन्तु तीसरी ताली पढ़ कर पता चलता है कि प्रदीप सौरभ ने हिजड़ों के जीवन पर  कितना शोध किया है। काउंसलर ज़ुबैरी ने सोहन राही को हिन्दी और उर्दू का श्रेष्ठ गीतकार कहा।
कथा यू.के. के महासचिव कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने सम्मानित पुस्तकों की चयन प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए समारोह में मौजूद सोआस विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष फ़्रेंचेस्का ऑरसीनी को सम्बोधित करते हुए आग्रह किया कि विद्यार्थियों का सक्रिय लेखकों के साथ पारस्परिक मेलजोल ज़रूरी है। इससे ब्रिटेन में हिन्दी साहित्य एवं गतिविधियों को एक नई दिशा मिलेगी। संचालन करते हुए तेजेन्द्र शर्मा ने तीसरी ताली उपन्यास एवं सोहन राही के गीतों एवं ग़ज़लों से परिचय करवाया।
फ़्रेंचेस्का ऑर्सीनी ने तेजेन्द्र शर्मा के प्रस्ताव का स्वागत किया और कहा कि भविष्य में कथा सम्मान का आयोजन ऐसे समय में किया जाए जबकि विश्विद्यालय की कक्षाएं चल रही हों और अन्य साहित्यिक गतिविधियां भी हो रही हों।
कथा यू. के. के अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने उपन्यास तीसरी ताली पर भारत के समीक्षकों की टिप्पणियां पढ़ कर सुनाईं जिनमें सुधीश पचौरी, हीरालाल नागर एवं निरंजन क्षोत्रिय की टिप्पणियां शामिल थीं।
सोहन राही की पुस्तक कुछ ग़ज़लें कुछ गीत पर अपना लेख पढ़ते हुए नॉटिंघम की कवियत्री जय वर्मा ने कहा कि, सोहन राही एक पीढ़ी के लिए नहीं हैं वे युवा से लेकर सब उम्र वालों को अपने से लगते है। अंतर्मन की जटिल गुत्थियों को सुलझाते हुए जीने के अर्थ को अपनी संवेदनशील और मार्मिक कविताओं द्वारा जनसाधारण तक पहुंचाने में सफल हुए हैं।
सोहन राही ने कथा यू.के. के निर्णायक मण्डल को धन्यवाद देते हुए कहा, शेर कहना मेरा शुगल ही नहीं, मेरे जीवन की उपासना है। शेर-ओ-अदब मेरा जीवन है, मेरे गीत मेरा ओढ़ना बिछौना हैं। उन्होंने अपने गीत – कोयल कूक पपीहा बानी... का सस्वर पाठ भी किया।
श्री गौरीशंकर (उप-निदेशक नेहरू सेंटर) ने कहा कि यह गर्व का विषय है कि अब कथा यू.के. सम्मान की चर्चा यू.पी.एस.सी. बैंकिंग बोर्ड एवं रेल्वे बोर्ड के टेस्टों में भी होती है।
सरस्वती वंदना निशि ने की; सोहन राही का मानपत्र मुंबई से पधारीं मधु अरोड़ा ने पढ़ा तो प्रदीप सौरभ का मानपत्र पढ़ा हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री आनंद कुमार ने। संचालन तेजेन्द्र शर्मा ने किया।
कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त काउंसलर के.सी. मोहन, काउंसलर ग्रेवाल, श्रीमती पद्मजा,  प्रो. अमीन मुग़ल, अयूब ऑलिया, जितेन्द्र बिल्लु, राम शर्मा मीत,  अचला शर्मा, उषा राजे सक्सेना, गोविन्द शर्मा, नीना पॉल, महेन्द्र दवेसर, पद्मेश गुप्त,  निखिल कौशिक, विजय राणा, मीरा कौशिक, परवेज़ आलम, पुष्पा रॉव, कविता वाचकनवी, शन्नो अग्रवाल, वेद मोहला, डा. महिपाल वर्मा, के.बी.एल.सक्सेना, आदि ने भाग लिया।