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दैनिक जागरण में 'हिन्दी चेतना' का लघुकथा विशेषांक

रविवार 18 नबम्बर 2012 के दैनिक जागरण में पृष्ठ संख्या 9 पर 'हिन्दी चेतना' के लघुकथा विशेषांक पर लिखा गया है । जो लिखा गया है वह प्रस्तुत है -
कभी रहा होगा लोगों के पास इतना समय कि तोल्स्तोय या दोस्तोएव्सकी के वार ऐंड पीस या क्राइम एंड पनिशमेंट जैसे भारी भरकम उपन्यास भी बड़े चाव से पढ़ लेते होंगे, लेकिन आज के महानगरीय मानुष के पास पठन-पाठन के अलावा श्रवण और दर्शन के दूसरे माध्यम मौजूद हैं कि पठन-पाठन के लिए न तो उसके पास समय बचा है, न ही वैसी रुचि और इच्छा शेष रह गई है। यदि शेष है भी तो वह उसे कम से कम समय में कम से कम शब्दों में पढ़कर पूरी कर लेना चाहता है। देश की छोटी-बड़ी ज्यादातर पत्र-पत्रिकाओं में कहानी और उपन्यास अंश के साथ लघुकथाओं को भी स्थान मिलता रहा है और कुछ पत्रिकाओं ने तो लघुकथा विशेषांक तक प्रकाशित किए हैं। कनाडा से प्रकाशित होने वाली चर्चित पत्रिका हिन्दी चेतना (सं. श्याम त्रिपाठी / सुधा ओम ढींगरा) का नया अंक लघुकथा विशेषांक है, जिसमें देश और दुनिया के कथाकारों की लघुकथाएं छपी हैं। इसका संपादन चर्चित लघुकथा लेखक सुकेश साहनी और रामेश्वर काम्बोज हिमांशु ने किया है। हिन्दी  चेतना के इस विशेषांक में पाठकों को पढ़ने को मिल सकती हैं-राष्ट्र का सेवक (प्रेमचंद), गिलट (उपेंद्रनाथ अश्क), संस्कृति (हरिशंकर परसाई), मैं वही भगीरथ हूं (शरद जोशी), मेरी बड़ाई (सुदर्शन), भिखारी और चोर (रावी), पानी की जाति (विष्णु प्रभाकर), नैतिकता का बोध (रघुवीर सहाय), अपने पार (राजेंद्र यादव) जैसी महत्वपूर्ण हिन्दी लघुकथाएं। इस अंक में प्रेम (इवान तुर्गनेव), अलाव और चीटियां (सोल्जेनित्सिन), तस्वीर (यासुनारी काबाबाता), निद्राजीवी (खलील जिब्रान), ठंडी आग (लूशुन), कमजोर (चेखव), पुल (काफ्का) तथा यांत्रिक (चार्ली चैप्लिन) जैसी दुनिया की श्रेष्ठ लघुकथाएं भी हैं। इनके अलावा चित्रा मुद्गल, श्यामसखा श्याम, असगर वजाहत, युगल, सुभाष नीरव, कमल चोपड़ा, मुकेश वर्मा, चैतन्य त्रिवेदी, सूर्यकांत नागर, अशोक भाटिया, बलराम अग्रवाल तथा कमलेश भारतीय जैसे शताधिक कथाकारों की महत्वपूर्ण लघुकथाएं पाठकों के लिए संजोई गई हैं। सुधा ओम के आखिरी पन्ना में सही ही लिखा गया है कि अभी तो हम विपरीत धारा में नौका चलाने की चुनौती स्वीकार कर संघर्ष कर रहे हैं। धीरे-धीरे अंधेरे रास्ते स्पष्ट होने शुरू हुए हैं। कुल मिलाकर लघुकथा को वैश्विक संदर्भ में पेश करने का हिंदी में यह अब तक का सबसे बड़ा और अहम प्रयास है।
वैसे आप लिंक पर भी जा कर पढ़ सकते हैं ---


http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2012-11-18&pageno=9#id=111755267132629066_49_2012-11-18