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'हिन्‍दी चेतना' का जुलाई-सितम्‍बर 2015 अंक (वर्ष : 17, अंक : 67)

 

मित्रो, संरक्षक एवं प्रमुख सम्‍पादक श्‍याम त्रिपाठी , तथा सम्‍पादक डॉ. सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra के सम्‍पादन में कैनेडा से प्रकाशित त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 'हिन्‍दी चेतना' का जुलाई-सितम्‍बर 2015 अंक (वर्ष : 17, अंक : 67) अब इंटरनेट पर उपलब्‍ध है। सम्पादकीय, उद्गार, साक्षात्कार : प्रताप सहगल , प्रेम जनमेजय प्रेम जनमेजय । कहानियाँ: प्रश्न-कुंडली : गीताश्री Geeta Shree , काँच की दीवार : नीलम मलकानिया Neelam Malkania , केस नम्बर पाँच सौ सोलह : माधव नागदा Madhav Nagda , अग्नि परीक्षा: प्रो. शाहिदा शाहीन । व्यंग्य : जब मैं अमरीका गया, सुधाकर अदीब । लघुकथा : शादी का शगुन : डॉ.राम निवास मानव , बीमार आदमी : रणजीत टाडा Ranjit Tada , ख़ास आप सबके लिए! : अनिता ललित Anita Lalit । निबन्ध : डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल Giriraj Sharan Agrawal । लेख : अर्चना पैन्यूली । विश्व के आँचल से: नीना पॉल Neena Paul से बातचीत : कैलाश बुधवार Kailash Budhwar । भाषांतर : तेलुगु कहानी / तारों से खाली आसमान, प़ेद्दिंटि अशोककुमार Peddinti ashok kumar , अनुवादः आर. शांता सुंदरी । ओरियानी के नीचे : एसिड अटैक और प्रेम की प्रति हिंसा: सुधा अरोड़ा Sudha Arora । गीत : जया गोस्वामी । नवगीत : रमेश गौतम Ramesh Gautam , शशि पाधा Shashi Padha । कविताएँ : मनीषा श्री Manisha shree , अनीता शर्मा , संध्या शर्मा , नीलोत्पल Neelotpal Ujjain। दोहे : डॉ. सुरेश अवस्थी Kavi Suresh Awasthi , संजीव सलिल Sanjiv Verma 'salil' । ग़ज़ल : ज़हीर क़ुरैशी Zaheer Qureshi । हाइकु : रमेश चन्द्र श्रीवास्तव । ताँका : डॉ. कुमुद बंसल । माहिया : डॉ. सरस्वती माथुर। विश्वविद्यालय के प्रांगण से : कश्यप पटेल । अविस्मरणीय : गिरिजा कुमार माथुर। पुस्तक समीक्षा : अम्बर बाँचे पाती : डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा , पाल ले एक रोग नादाँ.... गौतम राजरिशी : पवन कुमार Pawan Kumar , खिड़कियाँ खोलो @omprakash ti : सौरभ पाण्डेय Saurabh Pandey , दस प्रतिनिधि कहानियाँ : पूजा प्रजापति , कसाब.गांधी@यरवदा.इन Pankaj Subeer : वंदना गुप्ता Vandana Gupta , गीतोपनिषद : डॉ. सुशीला देवी गुप्ता, फैसला अभी बाक़ी है Mukesh Dubey : शहरयार अमजद ख़ान Shaharyar Amjed Khan । पुस्तकें, साहित्यिक समाचार, आख़िरी पन्ना : सुधा ओम ढींगरा।
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हिन्दी चेतना टीम

1 टिप्पणियाँ:

Sheshnath Prasad said...

जुलाई-सितंबर 15 अंक की गीता श्री की कहानी प्रश्न-कुंडली बहुत अच्छी लगी. सबसे अच्छी बात यह कि इस कहानी में स्त्रियाँ खुद नारी विमर्श के लिए उत्सुक दिखाई देती हैं. हिंदी कहानी में नारी विमर्श की बहुत चर्चा है, जिसमें पुरुष वर्ग अधिक सक्रिय है. किंतु इन पुरुष कहानीकारों की व्यक्तिगत जिंदगी में स्त्रियों के प्रति कितना सम्मान है उसकी रिपोर्टें पढ़कर मन विकृत हो जाता है. इस कहानी में गीता श्री ने नारी विमर्श में स्त्रियों को शामिल कर उनके भीतर के दमित भावों को उनके ही माध्यम से आने दिया है. स्त्रियों के भावों को पढ़ना और बात है और उनका स्वयं का, अपने भीतर की कुंठा, भय, संत्रास आदि का अनुभूत कुछ और ही होगा. इससे वे नारी विमर्श में स्वयम् को खोलने की उलझन से दूर हो सकेंगीं.

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