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कथा चक्र में हिंदी चेतना की समीक्षा
लोकार्पण और विचार संगोष्ठी - 'हिंदी चेतना ' के प्रेम जनमेजय विशेषांक का डॉ. नामवर सिंह , प्रभाकर श्रोत्रिय द्वारा साहित्य अकादमी में लोकार्पण

प्रस्तुति – सुभाष नीरव
साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ’दिल्ली संवाद’ की ओर से ९ दिसम्बर,२०११ को साहित्य अकादमी सभागार, नई दिल्ली में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने की और मुख्य अतिथि थे डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय. कार्यक्रम का संयोजन और संचालन वरिष्ठ लेखक और पत्रकार बलराम ने किया. इस आयोजन में भावना प्रकाशन, पटपड़गंज, दिल्ली से प्रकाशित चर्चित चित्रकार और लेखक राजकमल के उपन्यास ’फिर भी शेष’ पर चर्चा से पूर्व भावना प्रकाशन से सद्यः प्रकाशित दो पुस्तकों – वरिष्ठतम कथाकार हृदयेश की तीन खण्डों में प्रकाशित ’संपूर्ण कहानियां’ और वरिष्ठ कथाकार रूपसिंह चन्देल की ’साठ कहानियां’ तथा वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रेमजनमेजय पर केंद्रित कनाडा की हिन्दी पत्रिका ’हिन्दी चेतना’ का लोकार्पण किया गया.
चन्देल ने कभी नीलाम होना स्वीकार नहीं किया
बलराम
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए बलराम ने भावना प्रकाशन, उसके संचालक श्री सतीश चन्द्र मित्तल और नीरज मित्तल के विषय में चर्चा करने के बाद वरिष्ठतम कथाकार हृदयेश के हिन्दी कथासाहित्य में महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे अपने समय के सशक्त रचनाकार रहे हैं जो अस्सी पार होने के बावजूद आज भी निरंतर सृजनरत हैं.
वरिष्ठ कथाकार रूपसिंह चन्देल के उपन्यासों और कहानियों की चर्चा करते हुए बलराम ने कहा कि चन्देल के न केवल कई उपन्यास चर्चित रहे बल्कि अनेक कहानियां भी चर्चित रहीं. उन्हीं में से श्रेष्ठ कहानियों का संचयन है उनका कहानी संग्रह – ’साठ कहानियां’. उन्होंने कहा कि चन्देल समकालीन कथा साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं जो अपनी सृजनशीलता में विश्वास करते हैं. चन्देल के विषय में मित्रगण जो बात गहनता से अनुभव करते हैं उसे सार्वजनिक मंच से उद्घोषित करते हुए बलराम ने कहा - “चन्देल ने कभी नीलाम होना स्वीकार नहीं किया.”
प्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रेमजनमेजय की व्यंग्ययात्रा पर प्रकाश डालते हुए बलराम ने कहा कि समकालीन व्यंग्यविधा के क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान है और उनके योगदान का ही परिणाम है कि कनाडा की पत्रिका 'हिन्दी चेतना' ने उनपर केन्द्रित विशेषांक प्रकाशित किया.
लेखकों पर बलराम की परिचायत्मक टिप्पणियों के बाद दोनों पुस्तकों और पत्रिका के लोकार्पण डॉ. नामवर सिंह, डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय और डॉ. अर्चना वर्मा द्वारा किया गया.
’फिर भी शेष’ पर विचार गोष्ठी
लोकार्पण के पश्चात राजकमल के उपन्यास ’फिर भी शेष’ पर विचार गोष्ठी प्रारंभ हुई. डॉ. अर्चना वर्मा ने अपना विस्तृत आलेख पढ़ा. आलेख की विशेषता यह थी कि उन्होंने विस्तार से उपन्यास की कथा की चर्चा करते हुए उसकी भाषा, शिल्प और पात्रों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की. वरिष्ठ गीतकार डॉ. राजेन्द्र गौतम ने उपन्यास की प्रशंसा करते हुए उसे एक महत्वपूर्ण उपन्यास बताया. वरिष्ठ कथाकार अशोक गुप्ता ने उपन्यास पर अपना सकारात्मक मत व्यक्त करते हुए उसके कवर की प्रशंसा की. डॉ. ज्योतिष जोशी ने उसके पात्र आदित्य के चरित्र पर पूर्व वक्ताओं द्वारा व्यक्त मत से अपनी असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि उपन्यास ने उन्हें चौंकाया बावजूद इसके कि उसमें गज़ब की पठनीयता है जो पाठक को अपने साथ बहा ले जाती है. इन वक्ताओं के बोलने के बाद डॉ. नामवर सिंह ने जाने की इजाजत मांगी और “मैंने उपन्यास पढ़ा नहीं है, लेकिन वायदा करता हूं कि उसे पढ़ूंगा अवश्य और जो भी संभव होगा करूंगा.” कहते हुए उपस्थित भीड़ को हत्प्रभ छोड़कर नामवर जी तेजी से उठकर चले गए. नामवर जी के जाने के पश्चात उपन्यास पर अपना मत व्यक्त करते हुए बलराम ने कहा कि यह एक महाकाव्यात्मक उपन्यास है.
कार्यक्रम के अंत में डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय ने अपना लंबा वक्तव्य दिया. उन्होंने उपन्यास के अनेक अछूते पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए पूर्व वक्ताओं से अपनी असहमति व्यक्त की, लेकिन लेखक की भाषा और शिल्प की प्रशंसा करने से अपने को वह भी रोक नहीं पाए.
भावना प्रकाशन के नीरज मित्तल ने उपस्थित लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया. इस अवसर पर बड़ी मात्रा में दिल्ली और दिल्ली से बाहर के साहित्यकार और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे. इस अवसर पर वरिष्ठ आलोचक डॉ. कमल किशोर गोयनका, ज्योतिष जोशी, साहित्य अकादमी के उपसचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, मदन कश्यप, रंजीत साहा, प्रदीप पन्त, राजेन्द्र गौतम, सुभाष नीरव, गिरिराज शरण अग्रवाल, नार्वे से आए रचनाकार सुरेश चन्द्र शुक्ल, उपेन्द्र कुमार, राज कुमार गौतम, मेधा बुक्स के अजय कुमार, सुरेश उनियाल, मनोहर पूरी, अशोक गुप्त, बलराम अग्रवाल, रमेश कपूर सहित लगभग पचहत्तर साहित्यकार और विद्वान उपस्थित थे.
प्रसिद्ध रचनाकार विष्णु नागर द्वारा सम्पादित शुक्रवार के ताज़ा अंक में हिन्दी चेतना के विशेषांक की चर्चा
व्यंग्यकार एवं लघुकथाकार श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' द्वारा कैनेडा में हुआ 'हिन्दी चेतना' के प्रेमजनमेजय विशेषांक का विमोचन

हिंदी प्रचारिणी सभा एवं हिंदी मार्खम बुक क्लब की ओर से गत ३ दिसम्बर को मिलिकं मिल्स लाइब्रेरी ७६०० कैनेडी रोड, मार्खम , ओंटेरियो, कनाडा में एक साहित्यिक संध्या का आयोजन किया गया | भारत से आए सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं लघुकथाकार श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' मुख्य अतिथि थे | हिंदी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष एवं हिंदी चेतना के प्रमुख सम्पादक श्री श्याम त्रिपाठी जी ने हिमांशु जी को हिंदी प्रचारिणी सभा की ओर से मान पत्र भेंट कर कार्यक्रम आरम्भ किया |
तदुपरांत
श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने 'हिन्दी चेतना' के प्रेम जनमेजय विशेषांक का विमोचन किया |

इस अवसर पर श्री रामेश्वर काम्बोज ने हिंदी चेतना की प्रशंसा करते हुए, प्रेम जनमेजय के जीवन और साहित्य के विषय में बहुत सुंदर और भावपूर्ण शब्द कहे | 'हिंदी चेतना' के सम्पादक मंडल को बधाई देते हुए उन्होंने कहा - 'हिंदी चेतना' आज विश्व की गिनी चुनी पत्रिकाओं में से एक है | आजकल भारत में भी इस स्तर की बहुत कम पत्रिकाएं रह गईं हैं | 'हिंदी चेतना' ही एक ऐसी पत्रिका है, जो विदेशों के हिन्दी साहित्यकारों के साथ- साथ भारत के साहित्यकारों को भी सम्मानित करती है | हिन्दी चेतना के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए उन्होंने व्यंग्य यात्रा के संपादक प्रेम जनमेजय जी और हिन्दी चेतना के मुख्य संपादक श्याम त्रिपाठी को निस्वार्थ भाव से हिन्दी पत्रिकाओं को समर्पित व्यक्तित्व बताया | इसके बाद श्री कम्बोज जी ने लघुकथा की कला व उसके तत्त्वों पर बहुत सुन्दरता से विवेचना की | साथ ही 'हिंदी हायकू, तांका और चौका आदि विधाओं पर प्रकाश डाला और अपनी ३ सुंदर लघु कथाएँ सुनाकर श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर दिया | उन्होंने श्रोताओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि ऐसा शांतिमय वातावरण मैंने भारत में साहित्य अकेडमी के कार्यक्रमों में भी नहीं देखा| इसके बाद श्रोताओं ने काम्बोज जी से कुछ प्रश्न पूछे और उन्होंने बड़ी कुशलता और सहजता से उनके उत्तर दिए |